छोटे शिवाजी को उनकी माता जीजाबाई रामायण, महाभारत और वीरता की कहानियाँ सुनाया करती थीं। उन्होंने बाल शिवा के मन में धर्म, न्याय और स्वतंत्रता के बीज बो दिए थे
"स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है" – ये भावना शिवाजी महाराज के भीतर बचपन से ही प्रज्वलित थी
आस-पास के गांवों में मुगलों और बीजापुर के सुल्तानों द्वारा किए गए अत्याचार देखे
प्रजा की पीड़ा ने उनके हृदय को झकझोर दिया।
संत रामदास स्वामी ने शिवाजी को आत्मबल, राष्ट्रभक्ति और धर्मरक्षा की शिक्षा दी। उनके मार्गदर्शन ने शिवाजी के स्वराज्य-संकल्प को और दृढ़ बनाया।
कूटनीति और शक्ति संतुलनशिवाजी ने देखा कि केवल वीरता नहीं, बल्कि चतुराई, रणनीति और संगठन ही एक स्वतंत्र राज्य की नींव बन सकते हैं। उन्होंने गनिमी कावा (छापामार युद्ध) को अपनाया।
1630 में जन्मे शिवाजी ने 1645 में तोरणा किले पर अधिकार कर स्वराज्य की नींव रखी। यह उनके संघर्ष और प्रेरणा की पहली विजय थी।
शिवाजी महाराज की प्रेरणा सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, बल्कि जन-जन की स्वतंत्रता की पुकार थी। उन्होंने न केवल राज्य की स्थापना की, बल्कि आत्मसम्मान, धर्म और संस्कृति की रक्षा की।